यदु - भारत आवाज़ जन की

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मेरी उम्र ज्यादा नहीं है,मात्र 46 साल का अबोध प्राणी हूँ

मेरी उम्र ज्यादा नहीं है,मात्र 46 साल का अबोध प्राणी हूँ

मेरी उम्र ज्यादा नहीं है,मात्र 46 साल का अबोध प्राणी हूँ...मेरा जन्म भले ही 1976 में हुआ था मगर मेरी आँखें कुछ देख पाने के काबिल बनी 2014 के बाद।

सच बताऊँ तो 2014 के पहले यह "ढेश" था ही बकवाद। 
इस ढेश में कहीं कुछ था ही नहीं...मात्र एक चाय की 'दोकान' और एक 'लेरभे टेसन' के सिवाय। 

हां उप्पर से इसमें भी एक विलेन था...जिसका नाम "हाचा लेभरू" जो रोज उस लेरभे टेसन पर जाता था...और उसपर काम करने वाले एक झासुम बच्चे "मुफ़्तेन्द्र पोडी" को तंग करता उसके चाय की केतली को पन्द्रह नाख बार छीनकर उसका "आईयों येनो" कर देता था...और वह बच्चा मिटरो...मिटरो चिल्लाता रहता था। 

मगर वह नामुराद हाचा लेभरु उसपर तरस नहीं खाता था...2014 से पहले वह लेभरू बहुत सताता था। वह झनता को कुछ नहीं दे पाता था।

फिर वही बच्चा 2014 के बाद झनता के बीच आता है...भीकास नाम के भाई के साथ वह यह समझाता है कि....वह नहीं रहेगा तो ढेस में परलय आ जायेगा...जो मुझे पसंद नहीं करेगा...उ लास्टद्रोही कहलायेगा।

वह कहता है कि हाचा लेभरु हर कुछ के जिम्मेदार हैं.... झनता को लभ जु...मगर मेरे बसप्पन के प्यार टम्बानी ठडॉनी ही ढेश के यार हैं।

आज हम झनता के साथ खुददे सबकुछ लास्टवादी देख रहे हैं...2014 के बाद से ही आंखे खोल रखे हैं ।

जो कहता है कि 2014 से पहले जीवित था वह छांग्रेस का पका हुआ भुट्टा है...वह फर्जी फरेबी महा झुट्टा है। 🙄

विनय मौर्या 
अचूक संघर्ष 

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